पोखरे की गंध - दुर्गन्ध को समेटा हुआ मैं ,सावन का दिहाड़ी मजदूर हूँ ,ये जलकुम्भियाँ ही मेरी मजदूरी हैं........
भावार्पण'
Thursday, August 16, 2012
मुझे गिरने दो .....
यह पागलपन नहीं है
जो मैं कर रहा हूँ ,
यह बुद्धिमानियत भी नहीं है
जिसे मैं दिखाना चाहता हूँ ,
मैं मजबूर हूँ वक़्त के हाँथो,
छत से गिर रहे पंख की तरह
मेरे गिरनेपन को गिरना मत कहो
मैं गिर रहा हूँ
मुझे गिरने दो ......