Sunday, September 23, 2012

प्रेम-भाव

मैं क्यूँ जागूँ इस भ्रम से?
प्रेम-भाव मनभावन जी
जब से मुझको प्रेम हुआ है
लगता सब कुछ पावन जी।

और सभी भ्रम तोड़ रहे हैं
मुझको यह भ्रम जोड़ रहा
प्रेम दीवाना मन ये ठहरे
प्रेमी मन जब मिले जहाँ
मन से मन को जोड़ रहा हूँ
जहाँ दिखे हैं साजन जी
जब से मुझको ...........

यही भाव आँखों में पढ़ कर
रिश्तों की पहचान करूँ
अभिलाषा यह शेष बची है
प्रेम रंग हर कहीं भरूँ
अब मैं वृष्टि करना चाहूँ
सब पर प्रेम का सावन जी
जब से मुझको  .............
मैं क्यूँ जागूँ ........
जब से मुझको .............!!