लिपटना चाहता हूँ
अपनी ही परछाई से
लौटता जा रहा हूँ
पीछे,और पीछे,और भी पीछे
अँधेरी सुरंग में
किनारों की तरह।
लौटनें का एहसास
ना तो मुझे है
ना ही मेरी परछाई को
मगर लिपट जाने की चाह
मुझमें भी है
और शायद,
मेरी परछाई में भी है
अँधेरी सुरंग में
किनारों की तरह ...........