नींद में है मेरा खूँ
नदियों की तरह,
सोख लेना चाहता हूँ
रिसता हुआ लहू
सोख्ते से;
पसीनें में लिपटा हुआ तौलिया
कामगारों के गंध से तानपुरा हुआ है।
प्रत्येक विचार के अपनें इशारे हैं
जो स्पष्ट होते हैं
उँगलियों पर
चुधिया आई आँखों नें विश्राम पाया
पाँव का डगमगा आना कमजोरी नहीं होती
हर बार,
विचलता गति है अविचलता की ओर
सितार की तार पर हैं मेरे विचार
जहाँ बहती हैं स्वर-लहरियाँ
खोमचों में भरपेट भोजन
नाव जीतते हैं समुद्र-लहरों से
धान के खेत में बेहन का उद्योग
गाँव में,
हर बार गाता हूँ धुनों में
कविता की तलाश
उदासी भरती है।
बाँस के पेड़ों पर तोतों का बसेरा है
तोतों में टिकोरों की प्यास
फूल से बच्चे रोटी के ख्वाब में कातिल हो गए।
नदियों की तरह,
सोख लेना चाहता हूँ
रिसता हुआ लहू
सोख्ते से;
पसीनें में लिपटा हुआ तौलिया
कामगारों के गंध से तानपुरा हुआ है।
प्रत्येक विचार के अपनें इशारे हैं
जो स्पष्ट होते हैं
उँगलियों पर
चुधिया आई आँखों नें विश्राम पाया
पाँव का डगमगा आना कमजोरी नहीं होती
हर बार,
विचलता गति है अविचलता की ओर
सितार की तार पर हैं मेरे विचार
जहाँ बहती हैं स्वर-लहरियाँ
खोमचों में भरपेट भोजन
नाव जीतते हैं समुद्र-लहरों से
धान के खेत में बेहन का उद्योग
गाँव में,
हर बार गाता हूँ धुनों में
कविता की तलाश
उदासी भरती है।
बाँस के पेड़ों पर तोतों का बसेरा है
तोतों में टिकोरों की प्यास
फूल से बच्चे रोटी के ख्वाब में कातिल हो गए।
