सोचते ,बोलते फिर सोचते ..
इस प्रक्रिया से
मैं थक चूका हूँ ,
मैं मौन होना चाहता हूँ ,
निःशब्द , निर्विचार, निर्भाव
मैं सत्य होना चाहता हूँ,
वह सत्य,
जहाँ मैं पहचान सकूँ
खुद को
शब्दों की सहायता के बगैर ,
जहाँ समग्र
मेरी प्रज्ञा को
सत्व करे
बुद्धि की दलाली के बगैर .....................
इस प्रक्रिया से
मैं थक चूका हूँ ,
मैं मौन होना चाहता हूँ ,
निःशब्द , निर्विचार, निर्भाव
मैं सत्य होना चाहता हूँ,
वह सत्य,
जहाँ मैं पहचान सकूँ
खुद को
शब्दों की सहायता के बगैर ,
जहाँ समग्र
मेरी प्रज्ञा को
सत्व करे
बुद्धि की दलाली के बगैर .....................