पोखरे की गंध - दुर्गन्ध को समेटा हुआ मैं ,सावन का दिहाड़ी मजदूर हूँ ,ये जलकुम्भियाँ ही मेरी मजदूरी हैं........
भावार्पण'
Sunday, September 2, 2012
स्वप्न
तुम मेरे ही स्वप्न का प्राकट्य हो . तुम मरमरी सी देह का मर्दन लिए इन मद भरे नयनों से जब-2 देखती हो तब याद आता है मुझे यह ख्वाब में भी घट चुका है इस तरह ही .