पोखरे की गंध - दुर्गन्ध को समेटा हुआ मैं ,सावन का दिहाड़ी मजदूर हूँ ,ये जलकुम्भियाँ ही मेरी मजदूरी हैं........
भावार्पण'
Sunday, September 2, 2012
मेरा क्षितिज
क्यूँ पास आना चाहते हो? तुम बादल थे मैं था ज़मीन तुम छोड़ गए थे जब मुझको . रोया किसान रोयी ज़मीन तुम बरसे थे और कहीं जा . तुम कहते थे मैं योग्य नहीं हूँ मैं जान चुका हूँ खड़े-पड़े अब इस मत को, बादल की दरकार नहीं है अब मुझको; मेरा क्षितिज तो सिमट रहा है .