Wednesday, August 29, 2012

पेड़ की छाँव

चाँद ने  बादल  की चादर तान दी
सो गया ,
नींद छोटी थी
जागा
साँप ने केंचुल छोड़ दी
बोसीदा चादर बिखर गया .
एक टुकड़ा
मेरे सामने के पेड़ पर अभी -2 उतरा है
महुए के पात रंगीन हो उठे
फफूंदाई रोटी के जैसे .
बाकी के टुकड़े सीता-खोज को निकले हैं
अलग-2 दिशा में
पेड़ की ओर नहीं ...........