पोखरे की गंध - दुर्गन्ध को समेटा हुआ मैं ,सावन का दिहाड़ी मजदूर हूँ ,ये जलकुम्भियाँ ही मेरी मजदूरी हैं........
भावार्पण'
Sunday, September 23, 2012
बड़ा (छोटा)
मंजिल के थे ख्वाब बड़े मंजिल तो बस छोटा सा है। लम्बी राहें छोटा मंजिल, करता अशांत मैं दिशा-भ्रांत, एक बड़ा (छोटा) ख्वाब फिर बुनता हूँ एक नए राह की खोज शुरू फिर करता हूँ।