हर शख्स है परेशाँ अपनी शख्सियत से
वह शख्सियत जो छिपता अपनी असलियत से ।।
वह खून मेरा है नहीं,पर प्यार उससे है हमें
गैर भी अपना हुआ है तब्नियत* से ।।
हर साँस मुझको फिर नया मंजिल दिखाती है
मैंने उसे भी पा लिया मज्जूबियत* से ।।
तब्नियत* -गोद लेना
मज्जूबियत*-तल्लीनता (सूफी अर्थों में )