चूड़ियाँ बज उठी हैं, जाओ पास जाओ तुम
लौट आये? घटा क्या? कुछ तो बताओ तुम ।।
इरादा कौन जाने शाखों के परिंदों का
रुकेंगे शाख पर गर ये, नहीं इनको उड़ाओ तुम ।।
कहानी में मैं अभिनय कर रहा हूँ जनता हूँ पर
मैं नायक हूँ कहानी का ज़माने को बताओ तुम ।।
दीवाना दूर से ही देखकर खुश हो रहा है
वो आ जाये यहाँ कुछ इस तरह जलवा दिखाओ तुम ।।
अक्षर बस हैं अक्षर यह नहीं दर्पण समाजत का
अक्षर थक चुके हैं अब नयी भाषा बनाओ तुम ।।
लौट आये? घटा क्या? कुछ तो बताओ तुम ।।
इरादा कौन जाने शाखों के परिंदों का
रुकेंगे शाख पर गर ये, नहीं इनको उड़ाओ तुम ।।
कहानी में मैं अभिनय कर रहा हूँ जनता हूँ पर
मैं नायक हूँ कहानी का ज़माने को बताओ तुम ।।
दीवाना दूर से ही देखकर खुश हो रहा है
वो आ जाये यहाँ कुछ इस तरह जलवा दिखाओ तुम ।।
अक्षर बस हैं अक्षर यह नहीं दर्पण समाजत का
अक्षर थक चुके हैं अब नयी भाषा बनाओ तुम ।।
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