Sunday, September 23, 2012

निर्विचार

सांसों की गहराई में क्यूँ हलचल होती रहती है
जीवन मिलता साँसों से पर धड़कन खोती रहती है ।।

कोरे दर्शन छोडो तुम जो जीवन में फिर आस जगे
निर्विचार के ही विचार में जीवन-ज्योति रहती है ।।

पेड़ों की छाया में कोई साँसों की फ़रियाद सुने
मैं खोया हूँ खुद को खुद से, कुछ यूँ स्मृति जगती है ।।

कुछ ज्योतिष को, कुछ पौरुष को, कुछ संयोग को मान रहे
सब विचार तो बस विचार हैं,घटना घटती रहती है ।।