पोखरे की गंध - दुर्गन्ध को समेटा हुआ मैं ,सावन का दिहाड़ी मजदूर हूँ ,ये जलकुम्भियाँ ही मेरी मजदूरी हैं........
भावार्पण'
Sunday, September 2, 2012
रहा हूँ ........
मैं भूल रहा हूँ
ज़िन्दगी के तमाम रास्ते तमाम रिश्ते आँखों के दृष्टि-प्रसार में अब मुझे सिर्फ परछाइयाँ ही परछाइयाँ नज़र आती हैं परछाइयाँ
जो किसी की उपस्थिति एवं अनुपस्थिति दोनों की ही प्रतीक हैं।