पोखरे की गंध - दुर्गन्ध को समेटा हुआ मैं ,सावन का दिहाड़ी मजदूर हूँ ,ये जलकुम्भियाँ ही मेरी मजदूरी हैं........
भावार्पण'
Sunday, September 23, 2012
मैं खड़ा अकेला
मैं खड़ा अकेला मंजिल पर कोशिश करता हूँ पहचान सकूँ मैं कौन राह मुझको मंजिल पर लाया है। असमर्थ खड़ा मैं निर्विवेक खोज सका न राह एक राहों की बहुलता में धुंधलका महसूस करता हूँ।