पोखरे की गंध - दुर्गन्ध को समेटा हुआ मैं ,सावन का दिहाड़ी मजदूर हूँ ,ये जलकुम्भियाँ ही मेरी मजदूरी हैं........
भावार्पण'
Sunday, September 23, 2012
लोकतंत्र
लोकतंत्र छाया में साया है है नहीं है छिपकर भी। आँखों के नीचे स्स्याह गड्ढों की तरह जूते के तलवे टेल काँटे की तरह। लोकतंत्र, कुत्ते को पट्टे में बाँधे सैलानी की तरह ...