जीव है
दृश्य भू-पद .
जो है लहरा रहा
दृष्टि के समक्ष
भव्य बन
ईमारत की तरह .
आत्मा जड़ है,
जो अदृश्य तो है
लेकिन,
जिसके आधार पर ही हम
लहरा रहे हैं
फहरा रहे हैं,
अपनी सभ्यता का झंडा
सौंदर्य का प्रतीक बन .
ईश्वर है बीज,
जिसकी ही अभिव्यक्ति
दृश्य व अदृश्य हैं.
दोनों का ही अस्तित्व है ;
इसी बीज के कारण .
तो क्या ,
वृक्ष का जीवन है सुखद प्रतीक
जीव की कही-अनकही कहानियों का .
ध्यातव्य है कि,
अभिव्यक्ति हैं बीज की ही
ये दृश्य-अदृश्य
परन्तु नहीं रहता बीज का अस्तित्व
अदृश्य अभिव्यक्ति के बाद .
तो क्या ईश्वर आराधना
बीज का मातम है,
जिसे हम,
बड़ी ही श्रद्धा से याद करते हैं
बुढ़ापे में जवानी की तरह..................
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