समय के तहखाने में सुरक्षित
हमारा अतीत
वर्तमान में खलिहान है।
पुंसवन हमारी बेड़ियाँ हैं,
ग्रेट चार्टर है हमारे लिए
हमारा जन्म,
नाखून तले गन्दगी सरीखे हम
अनावश्यक हैं,
हम ना हों तो लाभ हमारा ही है।
आखिरी गली के आखिरी मकान में मैं
स्वप्नों की चादर तानें
पांओं को समेटता रहता हूँ,
हर सुबह सारे सपनों को घूरे पर डाल
खाद बननें की प्रतीक्षा करता हूँ
कर रहा हूँ
बुधई* की तरह।
हम व्यस्त हैं,
अपनीं बदसूरती को निखारनें में।
भैरवी (योजनाओं)में हमारा खयाल सितार सा
हम स्वयं सारंगी की उदास धुनें,
गुड की भेलियाँ दीमक के ढूह साबित हुयी हैं।
मेरे छप्पर पर उग आई लौकी दरअसल करेला है,
करेले का स्वाद
जोरबा भी
बुद्ध भी
पंख-विहीन गौरैया का रूदन गीत समझा गया है।
*दूरदर्शन पर प्रसारित हो चुके प्रसिद्द धारावाहिक 'नीम का पेड़' का प्रमुख पात्र 'बुधई' से तात्पर्य है।