परतों में बंद असलियत
सरसों पर पीलेपन की तरह उन्मुक्त झूँठ.
किताब के आखिरी पृष्ठ पर अंकित पृष्ठ संख्या सदृश
उग आया फूल
बेमानी है,
सत्य तो कैदी है तुम्हारी मुस्कानों के नेपथ्य में
कुछ गीला सा.
मैं हर क्षण राही हूँ
अगर तुम मार्ग हो
मेरे पांओं के निशान अभी भी संजीदा हैं
तुम्हारे दरारों पर.
आड़े-तिरछे बारिशों की छत ओढ़ कर
हमें पहुँचना है
वहां,
जहाँ,
............
सहस्त्रार कम्पास है.
मेरे चप्पुओं का आलाप
तुम्हारी प्रतिक्रिया का कोरस
मुक़म्मल गीत सा.
मेरे पलायन का भार थामें
मन का पंख,
सर्कस के करतबों का शिष्य है
पुरानी बूँदों से नए झरनों का जन्म हुआ
मुरझा आये फूलों में तुम्हारे होनें की खुशबू है ..............
सरसों पर पीलेपन की तरह उन्मुक्त झूँठ.
किताब के आखिरी पृष्ठ पर अंकित पृष्ठ संख्या सदृश
उग आया फूल
बेमानी है,
सत्य तो कैदी है तुम्हारी मुस्कानों के नेपथ्य में
कुछ गीला सा.
मैं हर क्षण राही हूँ
अगर तुम मार्ग हो
मेरे पांओं के निशान अभी भी संजीदा हैं
तुम्हारे दरारों पर.
आड़े-तिरछे बारिशों की छत ओढ़ कर
हमें पहुँचना है
वहां,
जहाँ,
............
सहस्त्रार कम्पास है.
मेरे चप्पुओं का आलाप
तुम्हारी प्रतिक्रिया का कोरस
मुक़म्मल गीत सा.
मेरे पलायन का भार थामें
मन का पंख,
सर्कस के करतबों का शिष्य है
पुरानी बूँदों से नए झरनों का जन्म हुआ
मुरझा आये फूलों में तुम्हारे होनें की खुशबू है ..............
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