Wednesday, February 6, 2013

मुक्ति

मेरी उँगलियों के फफोलों पर
दग्ध ताप का एहसास है
जिनकी वजह पंखुड़ियाँ हैं .
किसी आर्ट-गैलरी में फैली हुयी उदासी
घनीं धूप में खिला हुआ गुलाब है
जिनसे निःश्रित शब्द की तासीर
बेचैन सी
मुँह में खून सा.
दुनिया की सारी छतें एक सी हैं
छतों के नीचे रहनें वाले लोग 
अलग-अलग,
भूगोल एक है 
विज्ञान भी 
इतिहास अलग,
कल्पना की ज़मीन 
तत्व से भिन्न है .
वेद को सुनें जाने से पूर्व 
प्रेम का अस्तित्व था,
आत्मा नें जन्म पाया शरीर के गर्भ से ,
शरीर की मृत्यु हुयी 
आत्मा की चिता पर .
नक्षत्रों के पोर-पोर में मेरा स्पर्श 
मेरे मैं तक सीमित है 
ये बौद्धिक वितंडा नहीं है;
मेरे मैं नें,
मेरे मैं से मुक्ति पा ली .
ज़िन्दगी स्थान में मुक्त है 
मृत्यु आकाश में सीमित 
मुक्ति-बंधन एक हैं ,
सोहरणी-रुदाली सरीखी .
समुद्र-समझी नें समझ से मुक्त कर दिया 
उपन्यास के आखिरी पृष्ठ नें प्रथम का भेद खोला.