Saturday, April 27, 2013

फुनगी

वाबस्ता हूँ
मैं,
कई सारी कहानियों से,
कि कैसे गुडी-मुड़ी माई की रातें
प्रकाश-विहीन दिन थे
गुडी-मुड़ी सी,
कि मज़बूत थूनों नें इंकार कर दिया
कमज़ोर बडेर का बोझ थामनें से,
कमज़ोर बडेर मजबूत थून बन बैठे
आकाश-विहीन छत का,
गहनों नें ज़मीनों का रूप थाम्हा,
भूँखपेक्षी चर्या सम्मानपेक्षी बनीं
अथक परिश्रम से
झुकते थे सभी सम्मान में,
बिंदु नें विस्तार पाया
इतना कि किस्से सुरक्षित हैं,
गाँठों में गुँथीं दीवारें
छतों के पार के छत का रास्ता हैं,
मेरी सिगरेट का धुआँ
मेरा अपना बादल है।
फुनगी टूटती है चुटकियों से
बोध से रहस्य ।