Wednesday, June 12, 2013

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नए से दिखते पुरानें मन पर सन्धान
चाय में डूबी पावरोटी पर सवार
शासक;
शासितों की प्रतीक्षा में
मेरे कटे सर के इंतज़ार में मुझे बाँटता है
मुझसे ही
कोशिश जारी है;
ठेले-ठेले पर बाँट दिया गया हूँ मैं
गोया मैं हापुस हूँ।
मुझे एहसास था कि प्रत्यंचा चढ़ ही जाएगी
वीर्यहीनों की देह पर,
सारे एढ़े -टेढ़े निशानची
मेरी जानिब निशाना साधे
पिताओं का नेतृत्त्व करेंगे
मैं गंगा की रेत में गंगा सा;
जानता था कि मेरी कुसलियाँ तक चूस ली जायेंगीं।
मेरी कोशिश थी कि
रास्ते का दूसरा छोर दूर तक जाये,
आसमाँ सिमट आये हाँथों की पहुँच में,
दूब के मुस्कान पीपल समेट लें,
पीपल बच्चों सी उछल-कूद,
आखिरी लौ देना चाहता था
भाष्यों की चिता को,
ताकि टूट जाये जनेऊ की आखिरी गाँठ तक
मिट जाये खयाल जिहाद का
मैं आजाद होते देखना चाहता था 
तुम्हारी नंगी छातियाँ
सारी बंदिशों से
उद्यत थी खुलनें को मेरे पाजामे की गाँठ भी,
मैं मिटा देना चाहता था सारे कोड़ों के निशान
सभी के पीठ से,
लहरों नें कहा तुम हो सही राह पर
मैं चलता गया
मंजिलें पूछते हो ???
हा,हा,हा, ..............  
मैं जानता था कि मेरे तड़ीपार की तस्वीर
मेरे ख्वाहिशों की फसल है
तुम पर प्रश्न-चिन्ह जारी है ..............?????????????
हापुस का चूसा जाना भी ..................?????????????