Saturday, July 28, 2012

मेरे साँस......

मेरे साँस ,
चलते-२ रुक जाते हैं .
भूल-२ कर साँस लिया करता हूँ मैं .

कभी-२ मुझे प्रतीत होता है
कि जैसे मैं जिंदा हूँ
अपनी साँसों से नहीं ,
मुझे अपनी ही साँस
परायी सी क्यूँ लगती है ?
भला मुझे ऐसा क्यूँ लगता है
कि मेरा मैं ही नहीं हूँ?

मैं फंसा हूँ पशोपेश में
कि किसे मानू अपना
मैं किसे कह दूँ  कि वह पराया है ,
जबकि मैं नावाकिफ हूँ
अपनी साँस तक से.

शायद इसीलिये ,
मैं बगैर चेहरा देखे ही
प्यार कर लिया करता हूँ सभी से
मैं मेरा नहीं,
मैं सबका हो गया हूँ .....