Saturday, July 28, 2012

! मंजिल !

क़दम रखते  हुए मैं
मंजिल ढूंढता  हूँ .
कुछ तय नहीं है
क़दम पर रख रहा हूँ .....

मुझे मालूम है यह
कि पहले तय तो कर लूँ ,
कहाँ मुझको है जाना
किसे खोना है पाना...

मगर फिर सोचता हूँ,
यही है दौर मेरा
इस समय ,
चलूँ ,
मैं बस चलूँ,
मैं बढ़ता  बह चलूँ.
मंजिल
पथ ये देगा आप ही.
मुझे है बस गुज़रना,
कहाँ है मुझको जाना
ये निश्चित पथ करेगा
मैं नहीं .........