पोखरे की गंध - दुर्गन्ध को समेटा हुआ मैं ,सावन का दिहाड़ी मजदूर हूँ ,ये जलकुम्भियाँ ही मेरी मजदूरी हैं........
भावार्पण'
Friday, August 24, 2012
बेशर्त दुनिया
दायरे बतलाती हैं क्या है हमारा दायरे एहसास करवाती हैं हमको हम अलग हैं किस जगह पर और सब से. तोड़ दे जो दायरे को कर सकेगा प्यार वह खुद से, सभी से। हर किसी को हर कहीं पर जोड़ पाएंगे हम, जब दायरों को तोड़ पाएंगे हम।