मैं फिरता हूँ यायावर बन सदा-सर्वदा,
पर आज यहाँ बैठा हूँ मैं,
संगम तट पर .
रेती पर
चौकियां सज गयी हैं,
पाँवो पर ,
रेत का दबाव महसूस होने लगा है .
लोग-बाग़ आना था आने लगे हैं,
कुछ डूब चुके हैं,
कुछ डूब रहे हैं।
विश्वास का कद
असमान छू रहा है (यदि संभव हो तो),
ख्वाबों का पंख घोसले में विश्राम चाहता है .