Saturday, March 23, 2013

हम इंसान थे

हम इंसान थे।
अलग-अलग क्षेत्रों में हमनें बनाये थे अपने-अपने मकान
अपने बच्चों के लिए,
विकसित किये थे हमनें कई रीति-रिवाज़
कहानियाँ भी
ताकि सुरक्षित रहे आनें वाला कल,
नदियों के पाट हमारी गाँठ थे
अँगरखा भी,
हमनें विकसित किये छंद -अलंकार,
उतार-चढ़ाव की सीमायें तय हुयीं
हमीं से,
हमीं नें यौवन को विज्ञान कर दिया,
विश्वविद्यालय हमारी देन हैं
क्षेत्र सिमट आये विभागों में
विभाग बपौती थे अध्यक्षों के,
पातंजलि के ग्रन्थ अरस्तू के शब्द बनें
ये तिलिस्म हमनें गढ़ा,
हमारे स्वप्न;
कारण बनें
हमारी सम्भावना-खोज का
सीमा-निर्धारण का भी,
स्थिरता नें विस्तार सौंपा
विस्तार नें लड़ाकों की फौज,
"हम कर सकते हैं"
नारे खूबसूरत हैं ...........................