Wednesday, April 17, 2013

चरख-भिख्वे

बालू के ढेर में
सीटियाँ बिखरी पड़ी हैं
शंख-रूपी।
बाज़दफा मेरे फूँक ज़ाया जाते हैं
तो कई बार
ध्वनि के तलवे चढ़
शब्द होते हैं,
"चरख-भिख्वे"।।





* नौवीं / दसवीं कक्षा में (स्पष्ट नहीं हूँ ), राहुल सांकृत्यायन द्वारा लिखित लेख 'अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा' पढ़ते हुए पहली दफ़ा 'चरख-भिख्वे' से परिचित हुआ था।भिक्षु हेतु निर्दिष्ट, 'चलते रहो' की बुद्धा-देशना, शंकराचार्य के चरैवेति-चरैवेति में भी अर्थ पाती है।