कई साल पहले गुलज़ार था ये मकान
चहकती थी चिड़िया रोटी के इंतज़ार में,
एक बिल्ली माँ बनी थी
इसी घर के किसी कोनें में,
रँभाती गायों को महसूसता हूँ
चरही पर,
नीम की तुलसी असीसती थी माई को,
बाबा की अर्थी पर आँसू टपके थे
मकान के
देखनें वालों नें देखा था;
मदमाते पीपल पर टँगा लँगोट
तब और भी लाल था,
मिट्टी की दीवारें माटी-माटी हो गयीं
चक्रों नें सहस्त्रार का चादर ताना;
ओस नदी होकर बह गया सागरों तक;
जोगी है खाली हो चुका मकान
ध्यान में डूबा हुआ।
आश्रम व्यवस्था कि छाया है
मकानों पर भी।
चहकती थी चिड़िया रोटी के इंतज़ार में,
एक बिल्ली माँ बनी थी
इसी घर के किसी कोनें में,
रँभाती गायों को महसूसता हूँ
चरही पर,
नीम की तुलसी असीसती थी माई को,
बाबा की अर्थी पर आँसू टपके थे
मकान के
देखनें वालों नें देखा था;
मदमाते पीपल पर टँगा लँगोट
तब और भी लाल था,
मिट्टी की दीवारें माटी-माटी हो गयीं
चक्रों नें सहस्त्रार का चादर ताना;
ओस नदी होकर बह गया सागरों तक;
जोगी है खाली हो चुका मकान
ध्यान में डूबा हुआ।
आश्रम व्यवस्था कि छाया है
मकानों पर भी।
