बाँध रखा था मैनें उसे
अपनीं बाँहों के बीच
खेलना चाहता था मेरे सीनें से वो;
ज़ुबाँ पर बिजली चटकी
वो बह गया
भूस्खलन सा।
निचुड़ आये थे गुलाबी बादल
तोरणों पर
धूल गुबार बन बैठे।
हज़ारों हज़ार चीटियाँ उग आई थीं
मेरे जिस्म पर
शायद आसमाँ पर भी,
लपेट रखा था उसनें मुझे
क़मर पर निशान अब भी है
शायद आसमाँ पर भी।
बिंधा था फूल काँटे से
काँटे नें फूल को सोखा
फूल नें तृप्ति पायी
जेठ को ओस नें झुठला दिया।
