कल रात आई थीं तुम्हारी मां
दबे पांव
मेरे कमरे में
निहारती रहीं चुपचाप
मेरी आदतों को
हरसिंगार का फूल झर गया,
झांकती हैं तुम्हारी मां
तुम्हारे चेहरे से
मुस्कुराया करो।
तुम्हें पता है
झांकता है चांद
उनकी पलकों से,
छू लिया था मेरा माथा
मेरी मां की तरह,
आधी रात बारिश हो गई
महुवे की।
रह गई हैं मेरे पास
सीपी ने समंदर को बांध लिया
अपनी अंजुरी में ,
किसी रोज चूम लेना
मेरी हंथेली
वहीं वो सो रही हैं।





